अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हर साल 29 जुलाई को मनाया जाता है |
यह दिन बाघों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में बाघों की घटती संख्या को रोकने और उनके संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना है।
इस दिवस की शुरुआत 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) में हुए एक टाइगर समिट में हुई थी, जहां बाघ आबादी वाले 13 देशों ने 2022 तक जंगली बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा था।
बाघों का संरक्षण केवल एक प्रजाति को बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। बाघ खाद्य श्रृंखला में शीर्ष पर होते हैं और शाकाहारी जानवरों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे जंगल का संतुलन बना रहता है।
वनक्षेत्राधिकारी श्रीमती अमिता थपलियाल का कहना है पिछले कुछ समय से उत्तराखंड ही नही अपितु सम्पूर्ण देश मे बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। जहाँ 2006 में बाघों की संख्या 1411 थी वही 2022 तक बाघों की संख्या 3682 हो गयी है ।
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के मुताबिक, दुनिया में जितने बाघ हैं, उनका तीन चौथाई हिस्सा यानी 75 फीसदी बाघ, भारत में हैं ।
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मसूरी वन प्रभाग के अंतर्गत टकारना के ग्रामीण महिलाओं ने बनाया भीमल एवम एलोवेरा से शैम्पू व साबुन ।
मसूरी वन प्रभाग के कैम्पटी रेंज में समापन हुआ तीन दिवसीय वन कर्मचारियों के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण (Skill Devlopment Training of forest employees) ।
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