Dobhal Vivek Sir Official  में आप सभी का स्वागत है....

उत्तराखंड राज्य प्रतीक चिन्ह (B.S. Negi Book)

                उत्तराखण्ड का राज्य चिन्ह

● 9 नवम्बर सन् 2000 को उत्तरप्रदेश के 13 हिमालयी जिलों को काटकर भारतीय गणतंत्र के 27वें एवं हिमालयी राज्यों के 11वें राज्य के रूप में उत्तरांचल नाम से राज्य का गठन किया गया।

● शासकीय कार्यों में जिस चिन्ह का प्रयोग करते हैं वह राज्य चिन्ह होता है।

● राजकीय चिन्ह हीरे के आकार या समचतुर्भुज जैसा प्रतीत होता है।

● राज्य चिन्ह में तीन पर्वत चोटियाँ दिखाई देती हैं जिसमें बीच वाली सबसे ऊँची चोटी पर लाल पृष्ठ में अशोक की लाट अंकित है, इन तीन पर्वत चोटियों की श्रृंखला उत्तराखण्ड की भौगोलिक एवं पारिस्थितिक प्रकृति को दर्शाती है।

● अशोक की लाट के नीचे संस्कृत भाषा में सत्यमेव जयते लिखा गया है जो मुंडकोपनिषद से लिया गया है।

● राज्य चिन्ह के बीच वाले भाग में श्वेत पृष्ठ पर चार जल धाराओं को नीले रंग में दिखाया गया है। यह जलधारायें राज्य की गंगा, यमुना, पश्चिमी रामगंगा एवं काली नदियों को दर्शाती हैं।

● पृष्ठ का लाल रंग शहीद राज्य आंदोलनकारियों के रक्त का प्रतीक है और श्वेत रंग की पृष्ठभूमि शांति प्रिय प्रवृत्ति वाले उत्तराखण्ड वासियों का प्रतीक है।

● राज्य चिन्ह के सबसे नीचे नीले रंग में उत्तराखण्ड राज्य अंकित है।

● यह प्रतीक चिन्ह उत्तराखण्ड शासन के सभी दस्तावेजों में प्रयुक्त किया जाता है।

● उत्तराखण्ड के प्रतीक चिन्ह पुस्तक के लेखक – जगमोहन रौतेला

● उत्तराखण्ड का राज्य खेल फुटबॉल है, इसे 11 अगस्त, 2011 में राज्य खेल घोषित किया गया।

● उत्तराखण्ड की प्रथम राज्य भाषा हिन्दी तथा द्वितीय राज्य भाषा संस्कृत है।

● संस्कृत को जनवरी 2010 में राज्य की द्वितीय राजभाषा घोषित की गयी।

● उत्तराखण्ड शासन द्वारा राज्य चिन्ह और प्रतीक चिन्हों का निर्धारण 2001 में किया गया।

                 उत्तराखण्ड राज्य गीत

● उत्तराखण्ड का राज्य गीत – उत्तराखण्ड देवभूमि मातृभूमि शत शत वंदन अभिनंदन

● उत्तराखण्ड का राज्य गीत 6 फरवरी 2016 हेमन्त बिष्ट द्वारा लिखा गया।

● राज्य गीत चयन समिति के अध्यक्ष थे – लक्ष्मण सिंह बटोटी

● राज्य गीत में आवाज़ श्री नरेन्द्र सिंह नेगी व अनुराधा निराला जी ने दी है ।

● उत्तराखण्ड राज्य वाद्ययंत्र – ढोल

● भंडारी कमेटी की सिफारिश पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हर्ष रावत ने 2015 में ढोल को राज्य वाद्ययंत्र घोषित किया।

● ढोल एक प्राचीन वाद्ययंत्र है, जिसको तांबे, पीतल व चाँदी धातु पर बकरी की खाल लगाकर बनाया जाता है। इसे मंगल वाद्य के नाम से भी जाना जाता है।

● ढोल-दमाऊं वाद्ययंत्र साथ-साथ बजाए जाते हैं।

          उत्तराखण्ड राज्य पशु – कस्तूरी मृग ]

● कस्तूरी मृग को हिमालयन या मस्क डियर भी कहा जाता है।

● कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मास्कस कास्मोसोगास्ट है।

● राज्य में कस्तूरी मृग की 4 प्रजातियाँ पायी जाती हैं।

● कस्तूरी मृग राज्य के लगभग 3600 मी. से 4400 मी. की ऊँचाई पर पाये जाते हैं।

● मादा कस्तूरी मृग की गर्भधारण अवधि 6 माह होती है।

● कस्तूरी मृग का मुख्य भोजन काई व दरभा घास है।

● कस्तूरी मृग के नाभि के नीचे स्थित ग्रन्थि से प्राप्त सुगंधित पदार्थ को कस्तूरी कहा जाता है।

● एक वयस्क नर मृग से औसतन 20 ग्राम कस्तूरी प्राप्त होती है।

● कस्तूरी मृग के सींग नहीं होते।

● कस्तूरी मृग को मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय अवैध व्यापार हेतु मारा जाता है।

● कस्तूरी मृग की एक ग्राम कस्तूरी की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग ₹4,00,000 तक होती है।

● भारत सरकार ने कस्तूरी मृग को 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अत्यंत संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया है।

● भारत में कस्तूरी मृग की कुल जनसंख्या लगभग 4000 से 5000 है।

● उत्तराखण्ड में कस्तूरी मृग मुख्यतः नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य, और अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य में पाये जाते हैं।

● राज्य में कस्तूरी मृग का संरक्षण 1982 में कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केन्द्र, अल्मोड़ा में किया गया।

● कस्तूरी मृग 1974 से उत्तराखण्ड का राज्य पशु घोषित है।

● भारत सरकार ने कस्तूरी मृग के संरक्षण हेतु 1972 के वन्यजीव अधिनियम के तहत इसे अनुसूची-1 में रखा है।

● कस्तूरी मृग के संरक्षण हेतु "कस्तूरी मृग परियोजना" 1982 में आरम्भ की गयी।

● उत्तराखण्ड में कस्तूरी मृग के प्रमुख प्राकृतिक शत्रु हिम तेंदुआ तथा सोन कुत्ता हैं।

  • मादा कस्तूरी मृग की गर्भधारण अवधि 6 माह होती है।
  • ​कस्तूरी मृग का मुख्य भोजन केदारपाती है।
  • ​कस्तूरी नर मृग के गुदा में स्थित ग्रंथि से प्राप्त की जाती है अर्थात कस्तूरी केवल नर मृग में ही पाई जाती है।
  • ​एक मृग से कस्तूरी 3-3 वर्ष के अंतराल में 30 से 45 ग्राम तक प्राप्त किया जा सकता है।
  • नेपाल में कस्तूरी को कपिल, कश्मीर में कस्तूरी पिंगल तथा सिक्किम में कस्तूरी को कृष्ण कहते हैं।
  • ​औषधि उद्योग में कस्तूरी का प्रयोग दमा, मिरगी, हृदय सम्बन्धी रोगों की दवाई बनाने में प्रयुक्त होता है। यह एक प्राकृतिक रसायन है।
  • ​रासायनिक रूप से कस्तूरी मिथाइल ट्राईक्लोरो पेंटाडेकेनल है।

उत्तराखंड राज्य पुष्प - ब्रह्मकमल

  • ​ब्रह्मकमल राज्य के हिमालयी क्षेत्रों में 4800 मी. - 6000 मी. की ऊँचाई पर मिलता है (Notes Publication, B. S. Negi)।
  • ​ब्रह्मकमल का फूल एस्टेरेसी कुल का पौधा है।
  • ​ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम सोसुरिया अबवेलेटा (Saussurea obvallata) है।
  • ​ब्रह्मकमल को स्थानीय भाषा में कौल पदम कहते हैं।
  • ​हिमाचल प्रदेश में ब्रह्मकमल को दूधाफूल कहते हैं।
  • ​कश्मीर में ब्रह्मकमल को गलगल कहा जाता है।
  • ​ब्रह्मकमल की अन्य प्रजातियों में फेनकमलकस्तूरा कमल भी मिलते हैं।
  • ​महाभारत के वन पर्व में ब्रह्मकमल को सौगंधिक पुष्प कहा गया तथा नेपाल में ब्रह्मकमल को टोपगोला कहते हैं।
  • ​ब्रह्मकमल की विश्व में 210 प्रजाति व राज्य में 24 प्रजातियां पायी जाती हैं।
  • सोसुरिया ग्रामिनीफोलिया (फेनकमल), सोसुरिया लप्पा, सोसुरिया सिमेसोनिया तथा सोसुरिया ग्रासोफेरा (कस्तूरा कमल) उत्तराखंड में पायी जाने वाली इसकी प्रमुख प्रजातियां हैं।
  • ​ब्रह्मकमल राज्य में फूलों की घाटी, केदारनाथपिंडारी हिमनद, शिवलिंग बेस आदि क्षेत्रों में बहुतायत में पाए जाते हैं।
  • ​ब्रह्मकमल माँ नंदा का प्रिय पुष्प है और नंदाष्टमी को तोड़ने का महत्व है
  • ​ब्रह्मकमल को हिमालयी पुष्पों का सम्राट कहा जाता है।

ब्रह्मकमल की विशेषता

  • ​ब्रह्मकमल बैंगनी रंग का होता है और इसकी पुष्प टहनियों में नहीं, बल्कि पीली पत्तियों से निकले कमल पात में पुष्प गुच्छ के रूप में खिलता है
  • ​ब्रह्मकमल पौधे की ऊँचाई 70 से 80 सेमी होती है।
  • ​ब्रह्मकमल फूल के खिलने का समय जुलाई से सितम्बर तक होता है।
  • ​ब्रह्मकमल के पौधे पर एक वर्ष में केवल एक ही पुष्प पाया जाता है।
  • ​ब्रह्मकमल का पुष्प अर्द्धरात्रि को खिलता है।
  • ​ब्रह्मकमल पौधे की जड़ों को पीलिया उपचार में प्रयोग किया जाता है।

फेनकमल / फेणाकमल

  • ​यह ब्रह्मकमल की प्रजाति का एक विरल पुष्प है जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उत्पन्न होता है।
  • गढ़वाल हिमालय की नीते-माणा घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले इस पुष्प से वहाँ के पालसी (पशुचारकों/अणवालियों) परिचित होते हैं
  • ​इसका सफेद पुष्प फेन (झाग) के समान श्वेत और सुकोमल होने से इसे यह नाम दिया गया है।
  • ​इसे सितम्बर-अक्टूबर के मौसम में 14000 फीट की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में देखा जा सकता है।

            उत्तराखंड का राज्य पक्षी - मोनाल ] ​

राज्य गठन के बाद मोनाल को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया।

● मोनाल को हिमालय का मयूर कहा जाता है इसका वैज्ञानिक नाम लोफोफोरस इंपीजेनस है ​।

●नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी मोनाल है ​डाफिया परिवार से सम्बन्धित पक्षी है ​मोनाल को स्थानीय भाषा में मन्याल या मुनाल कहा जाता है ​।

●मोनाल पक्षी राज्य के 2500-5000 मी॰ की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं ​मोनाल फासियानिडे परिवार का पक्षी है और मोनाल की 4 अन्य प्रजातियाँ इम्पेलेर, स्केलेटेरी, ल्यूरी एवं ल्यूफोफोरसेंस आदि भी पायी जाती है ।​

●कश्मीर में मोनाल को सुनाल व हिमाचल प्रदेश में नीलेगुरू तथा सिक्किम में मोनाल पक्षी को चामदोंग कहते हैं ​राज्य के अलावा मोनाल असम, कश्मीर, हिमाचल व नेपाल में भी पाये जाते हैं। ​

● मोनाल पक्षी घोंसला नहीं बनाती है यह किसी चट्टान या पेड़ के छेद में अंडे देती है ​नर मोनाल के सिर पर मोर की भांति कलगी होती है ​।

● मोनाल का प्रिय भोजन आलू की फसल है ​हिमालयी पक्षियों का सिरमौर कहे जाने वाले मोनाल को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित किया गया है ​सर्वाधिक मात्रा में मोनाल केदारघाटी में पाये जाते हैं ​।

●राज्य के वन्य जीव संरक्षण बोर्ड द्वारा पहली बार 2008 में मोनाल की गणना करायी गयी और 2008 तक राज्य में कुल मोनालों की संख्या 919 थी ​।

●वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 6 अनुसूचियाँ हैं जिसमें से मोनाल को अनुसूची नम्बर एक में रखा गया है। ​

उत्तराखंड राज्य वृक्ष बुरांस-

●​बुरांस वृक्ष 1500-4000 मी० की ऊँचाई पर मिलने वाला एक सदाबहार वृक्ष है, इसका वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन आरबोरियम है ।

●​बुरांस एरिकेसी कुल का वृक्ष है इसे हिमाचल प्रदेश में बुरंशों कहते हैं एवं कन्नड़ में बिली कहा जाता है।

● ​बुरांस नेपाल का राष्ट्रीय पुष्प है, जहाँ बुरांस को गुराँश कहा जाता है ।

●​बुरांस हिमाचल प्रदेश व नागालैंड का राज्य पुष्प है ​।

●बुरांस के पुष्प में मिथेनॉल होता है जो डायबिटीज के लिए फायदेमंद होता है।

● ​बुरांस वृक्ष को वन संरक्षण अधिनियम 1974 के तहत संरक्षित वृक्ष घोषित किया गया ।

●बुरांस वृक्ष की विशेषता - ​बुरांस फूलों का रंग चटक लाल होता है एवं सफेद रंग के बुरांस 11000 फिट की ऊँचाई पर पाये जाते हैं ​बुरांस के फूलों के खिलने का समय फरवरी से अप्रैल तक होता है।

                ​[ राज्य तितली कॉमन पीकॉक ] 

7 नवम्बर 2016 को कॉमन पीकॉक या लोग मोर को राज्य तितली घोषित किया गया था। ​उत्तराखण्ड की राज्य तितली का संशोधित नाम बुली वेडेड पीकॉक है ​बुली वेडेड पीकॉक का वैज्ञानिक नाम पैपिलियो बाइनर है।

● ​2016 में देहरादून के लच्छीवाला में बटरफ्लाई पार्क खोला गया ।


नोट्स पीडीएफ फाइल डाऊनलोड करने के लिए नीचे डाऊनलोड बटन पर क्लिक करें ।।


हमारे व्हाट्सएप ब्रॉडकास्ट में जुड़ने के लिए व्हाट्सऐप वाले बटन पर क्लिक करें ।।









Post a Comment

Thanku For Visiting

Previous Post Next Post