उत्तराखंड के महत्वपूर्ण प्रश्न (प्रतीक चिन्ह और इतिहास)
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- उत्तराखंड शासन द्वारा प्रतीक चिन्हों का निर्धारण 2001 में किया गया था।
- उत्तराखंड का राज्य खेल फुटबॉल है और 11 अगस्त 2011 से।
- उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा संस्कृत है, जनवरी 2010 से।
- उत्तराखंड का राजकीय गीत उत्तराखंड देवभूमि मातृभूमि शत-शत वंदन अभिनंदन है।
- उत्तराखंड राज्य गीत नरेंद्र सिंह नेगी एवं अनुराधा निराला ने गाया है।
- हेमंत बिष्ट को इसके मुख्य शिक्षक के रूप में श्रेय दिया जाता है और उनके द्वारा राज्य गीत लिखा गया था।
- सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया है।
- कस्तूरी मृग को हिमालयन मस्क डियर कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम कस्तूरगास्टर है।
- उत्तराखंड में कस्तूरी मृग की चार प्रजाति पाई जाती है।
- कस्तूरी मृग उत्तराखंड में 3600-4400 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं।
- मादा कस्तूरी मृग की गर्भाधान अवधि लगभग 6 माह होती है।
- कस्तूरी मृग में ही कस्तूरी पाई जाती है। एक बार में 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी प्राप्त की जाती है।
- कस्तूरी का प्रयोग दमा व निमोनिया, मिरगी व बांकायुरिस, हृदय सम्बन्धी रोग के लिए प्रयोग की जाती है।
- रासायनिक रूप से कस्तूरी मियाड ट्राइक्लोरो पेंटाडेकेनाल होती है।
- कस्तूरी मृग संरक्षण हेतु कस्तूरी मृग विहार की स्थापना 1972 में की गई।
- कंचुला खर्क (चमोली) में कस्तूरी मृग प्रजनन व संरक्षण केंद्र की स्थापना 1982 में की गई।
- मेहरुड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना 1977 बागेश्वर में की गई।
- ब्रह्मकमल को फूलों का सम्राट व हिमाचल में दूधा फूल कहा जाता है।
- नेपाल में ब्रह्मकमल को टोपागोला कहा जाता है।
- 4800-6000 मी० की ऊँचाई पर ब्रह्मकमल पाया जाता है।
- पूरे विश्व में ब्रह्मकमल की 210 प्रजाति पायी जाती है।
- राज्य में ब्रह्मकमल की 24 प्रजाति पायी जाती है।
- ब्रह्मकमल को वन पर्व में सौगंधित पुष्प कहा गया है।
- उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रह्मकमल है।
- उत्तराखंड प्रतीक चिन्ह पुस्तक के लेखक जगमोहन रौतेला है।
- कस्तूरी मृग का मुख्य भोजन केदारपाती है।
- राज्य वाद्य यंत्र ढोल बनाने के लिए भंडारी समिति का गठन किया गया।
- कोल पद्म ब्रह्मकमल का स्थानीय नाम है।
- ब्रह्मकमल की ऊँचाई 70 से 80 से०मी० होती है।
- बुराँश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रोन आरबोरियम है।
- बुराँश का वृक्ष 1500-4000 मी० की ऊँचाई पर पाया जाता है।
- भारत में बुराँश की कुल 87 प्रजाति पायी जाती है।
- बुराँश के वृक्ष की औसतन ऊँचाई 20-25 फीट होती है।
- बुराँश पुष्प खिलने का समय फरवरी से मार्च होता है।
- बुराँश का जूस हृदय रोग के लिए लाभकारी होता है, साथ इसे वन अधिनियम 1974 के तहत संरक्षित किया गया है। इसे कन्नड भाषा में बिल्ला को भी कहा जाता है।
- मोनाल को हिमालय का मयूर भी कहा जाता है, इसका वैज्ञानिक नाम लोफोफोरस ईपीजेनस है।
- मोनाल हिमालय में 2500 से 5000 मीटर तक की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।
- मोनाल पक्षी में वर्ष में 2 बार प्रजनन क्रिया होती है। तथा इसका प्रिय भोजन आलू है।
- 7 नवम्बर 2016 को कॉमन पीकॉक को राज्य की तितली घोषित किया गया। इसका संशोधित नाम ब्लू बैंडेड पीकॉक है। इसका वैज्ञानिक नाम पेपिलियो बाइनर है।
- कॉमन पीकॉक अपने अंडे टिमरू के पेड़ पर देती है। इसका जीवन काल 30-35 दिन का होता है। यह 7000 फीट की ऊँचाई पर पायी जाती है।
- राज्य गीत चयन समिति के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह बटोही थे।
- राज्य वाद्य यंत्र ढोल को 2015 में राज्य का वाद्य यंत्र बनाया गया।
- कस्तूरी मृग की औसत आयु 20 वर्ष होती है।
- ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम सोसूरिया अबलेटा है। इसे कश्मीर में गलगल एवं हिमाचल में दूधाफूल कहा जाता है।
- ब्रह्मकमल के खिलने का समय जुलाई से सितम्बर होता है।
- सर्वाधिक मात्रा में मोनाल केदारघाटी में मिलते है।
- राज्य में पहली बार मोनाल की गणना वर्ष 2008 में की गयी थी।
- राज्य का पहला बटरफ्लाई पार्क देहरादून में 2016 में बनाया था।
- राज्य में सफ़ेद बुराँश 11000 फीट की ऊँचाई के बाद मिलते हैं।
